Live-news: कोरोनावायरस महामारी ने भारत की हैल्थ सिस्टम की सच्चाई सबके सामने लाकर रख दी है।
कोरोना वायरस भारत की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में पांचवें स्थान पर है हमने इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों को भी पीछे छोड़ दिया है लेकिन इसके बावजूद भी भारत की स्वास्थ्य सेवाएं बहुत लचर दिखाई देती है।
घटना उत्तर प्रदेश के नोएडा शहर की है जहां पर एक गर्भवती महिला की इस कारण से मौत हो गई कि किसी भी अस्पताल ने उसे भर्ती नहीं किया, सभी अस्पतालों के पास एक ही जवाब था कि उनके पास इस महिला को भर्ती करने के लिए बेड नहीं है। ऐसे ही ऐसे ही घटना महाराष्ट्र के मुंबई, गुजरात के अहमदाबाद और लगभग देश के सभी बड़े शहरों से सामने आ रही है।
सभी राज्यो का यही कहना है की कोरोना वायरस के कारण देश के अस्पतालों पर बहुत दबाव बढ़ गया है लेकिन दूसरी तरफ अभी तक देश में सिर्फ 130000 कोरोना वायरस से संक्रमित सक्रिय मामले हैं। और दूसरी तरफ भारत की आबादी 135 करोड है। ऐसे ही में इतने कम मामलों में ही भारत की स्वास्थ्य सेवाओं का लचर पड़ जाना हमारे देश की एक बहुत बड़ी कमी को दिखाता है।
भारत अपनी अर्थव्यवस्था का महज 1.28% स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है। जबकि भारत का पड़ोसी देश नेपाल जो बहुत गरीब देश माना जाता है वह अपनी अर्थव्यवस्था का 2.5% स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है। वही मालदीप अर्थव्यवस्था का 9% स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है।
भारत की कमजोर सेवाओं के लिए सिर्फ केंद्र सरकार को दोष देना यह भी ठीक नहीं है इसके लिए राज्य सरकारें भी समान रूप से दोषी हैं क्योंकि एक राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं पर 37% केंद्र सरकार व्यय करती है और बाकी बचा हुआ 63% राज्य सरकार व्यय करती है।
जिसके कारण आपातकालीन स्थिति में गांव के लोगों को इलाज के लिए डॉक्टर भी नहीं मिलता।
ऐसे में करोना वायरस महामारी नहीं भारत के लोगों के सामने स्वास्थ्य सेवाओं की सच्चाई लाकर खड़ी कर दी है।
अब भारत को जरूरत है कि वह अपने स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करें तथा एक बड़ा हिस्सा जीडीपी का स्वास्थ्य सेवाओं पर लगाएं ताकि भविष्य में इस तरह की समस्याओं से भारत आसानी से सामना कर पाए। भारत में जो मौतें स्वास्थ्य सेवाओं के ना मिलने पर होती हैं ऐसी फिर कभी ना हो।
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